वो कौन है जो गम का मज़ा जानते नहीं…

वो कौन है जो गम का मज़ा जानते नहीं
बस दूसरों के दर्द को ही पहचानते नहीं,

इस ज़ब्र ए मसलहत से रुस्वाइयाँ भली
जैसे कि हम उन्हें और वो हमें जानते नहीं,

कमबख्त आँख उठी न कभी उनके रूबरू
हम उनको जानते तो है, पहचानते नहीं,

वाइज़ ख़ुलूस है तेरे अंदाज़ ए फ़िकर में
हम तेरी गुफ़्तगू का कभी बुरा मानते नहीं,

हद से बढ़े तो अलम भी है झेल दोस्तों
सब कुछ जो जानते है, वो कुछ जानते नहीं,

रहते है आफ़ियत से वही लोग जहाँ में
जो ज़िन्दगी में दिल का कहा मानते नहीं..!!

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