ज़ख्म ए तन्हाई में ख़ुशबू ए हिना किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था, सदा किसकी थी ?
आँसूओ से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैंने उठाए थे, दुआ किसकी थी ?
मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी ?
छोड़ दी किसके लिए तूने ये दुनियाँ ए फ़ानी
जुस्तज़ू सी तुझे हर वक़्त बता किसकी थी ?
उसकी रफ़्तार से लिपटी रहती मेरी आँखे
उसने मुड़ कर भी न देखा कि वफ़ा किसकी थी..!!
~मुज़फ़्फ़र वारसी