ना जाने कैसी तक़दीर पाई है
जो आया आज़मा के चला गया,
कल तक गले लगाने वाला भी
आज बस हाथ हिला के चला गया,
क्या अपना कहे उसे जो हमें
रोता देख मुस्कुरा के चला गया,
हमने पूछा कि कब आओगे वापस
बस हल्का सा सर हिला के चला गया,
वो मेरा जिसे मैं सुकून कहता था
मेरी ज़िन्दगी में आग लगा के चला गया,
ये कैसा चारासाज़ मिला हमें जो
इलाज़ के नाम पर रोग लगा के चला गया..!!