मैं ख्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर ए आईना मेरा अक्स है पस ए आईना कोई और है,
मैं किसी के दस्त ए तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़ ए दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है,
अजब ऐतिबार ओ बे ऐतिबारी के दरमियान है ज़िंदगी
मैं क़रीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है,
मेरी रौशनी तेरे ख़द्द ओ ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है,
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़िआ कोई और है,
वही मुंसिफ़ों की रिवायतें वही फ़ैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था पर मेरी सज़ा कोई और है,
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है,
जो मेरी रियाज़त ए नीमशब को सलीम सुब्ह न मिल सकी
तो फिर इस के मअ’नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है..!!
~सलीम कौसर