भूख के एहसास को शेर ओ सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो,
जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो,
मुझको नज़्म ओ ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो,
गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो,
ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो..!!
~अदम गोंडवी