गर्मी ए हसरत ए नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं,
शम्अ’ जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं,
बच निकलते हैं अगर आतिश ए सय्याल से हम
शोला ए आरिज़ ए गुलफ़ाम से जल जाते हैं,
ख़ुदनुमाई तो नहीं शेवा ए अरबाब ए वफ़ा
जिनको जलना हो वो आराम से जल जाते हैं,
रब्त ए बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आश्ना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं,
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं..!!
~क़तील शिफ़ाई