इस बहते हुए लहू में मुझे तो

इस बहते हुए लहू में मुझे तो बस इन्सान नज़र आ रहा है
लानत हो तुम पे तुम्हे ही हिन्दू मुसलमां नज़र आ रहा है,

ऐसी नफ़रत और हैवानियत से सियासत ही बड़ी ख़ुश है
वरना तो खलकत में हर कोई ही परेशां नज़र आ रहा है,

ये जो बने है एक दूसरे की जाँ के दुश्मन जल्लाद नहीं है
मुझे तो इस भीड़ में हर कोई ही बेगुनाह नज़र आ रहा है,

शौक़ ए आतिशबाज़ी महज़ तुम्हारी तफरीह का सामां है
वरना जिधर देखो जलता हुआ हिन्दोस्तां नज़र आ रहा है,

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