ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने

ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने
सुनाते हैं कुछ अफ़्साने पुराने,

एक आह ए सर्द बन कर रह गए हैं
वो बीते दिन वो याराने पुराने,

जुनूँ का एक ही आलम हो क्यूँ कर
नई है शम्अ परवाने पुराने,

नई मंज़िल की दुश्वारी मुसल्लम
मगर हम भी हैं दीवाने पुराने,

मिलेगा प्यार ग़ैरों ही में जालिब
कि अपने तो हैं बेगाने पुराने..!!

~हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

1 thought on “ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने”

Leave a Reply