आ जाए वो मिलने तो मुझे ईद मुबारक
मत आए ब हर हाल उसे ईद मुबारक,
ऐसा हो सब इंसान हों ख़ुश इतने कि हर रोज़
एक दूसरे से कहता फिरे ईद ए मुबारक,
हाँ मुझ से जिसे जिससे मुझे जो भी गिला हो
आबाद रहे शाद रहे ईद ए मुबारक,
तन्हाई सी तन्हाई कि दीवार भी शश्दर
अब खुल के कहे या न कहे ईद ए मुबारक,
सरगोशी ने पत्थर को सबक़ याद दिलाया
पानी ने लिखा आईने पे ईद ए मुबारक,
तुम जो मेरे शेरों के मुख़ातिब थे न होगे
आख़िर में तुम्हें सिर्फ़ तुम्हे ईद मुबारक..!!
~इदरीस बाबर