फ़लक पे कितना उदास कितना तन्हा
कितना बेकस सा लगा हिलाल ए ईद,
हम हुजूम ए शहर में भी तन ए तन्हा
वहाँ वो कहकशाँ में हो कर भी अकेला,
काश ! दरम्याँ दूरियाँ कम हो गई होती
तो इस साल हमारी भी ईद हो गई होती..!!
~नवाब ए हिन्द
फ़लक पे कितना उदास कितना तन्हा
कितना बेकस सा लगा हिलाल ए ईद,
हम हुजूम ए शहर में भी तन ए तन्हा
वहाँ वो कहकशाँ में हो कर भी अकेला,
काश ! दरम्याँ दूरियाँ कम हो गई होती
तो इस साल हमारी भी ईद हो गई होती..!!
~नवाब ए हिन्द