तुम्हारे हिज़्र में है ज़िन्दगी दुश्वार….

तुम्हारे हिज़्र में है ज़िन्दगी दुश्वार बरसो से
तुम्हे मालूम क्या तुम हो समन्दर पार बरसों से,

चले आओ तुम्हारे बिन न जीते है न मरते है
बनी है ज़िन्दगी जैसे गले का हार बरसों से,

कभी दुनियाँ से हम हारे, कभी तुमसे, कभी ख़ुद से
हमारी इश्क़ में होती रही है हार बरसों से,

निकलना कश्ती ए उम्मीद तूफानों से मुश्किल है
एक ऐसे नाख़ुदा के हाथ है पतवार बरसों से,

इसी मिल्लत के गहवारे को हिन्दुस्तान कहते है
कहीं रौशन शिवाले और कहीं मीनार बरसों से,

दिन रात किस की मुन्तज़िर रहती है ये आँखे
ये किस की राह तकते है दर ओ दीवार बरसों से..!!

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