ये नफ़रतो की सदाएँ, वतन का क्या होगा ?
हवा में आग बही, तो चमन का क्या होगा ?
सफर नसीब मुसाफिर से ये सवाल न कर
कहाँ सुकूं मिलेगा थकन का क्या होगा ?
किसी के पास इबादत का आज वक्त नहीं
हमारे बाद यहाँ फ़िक्र ओ फन का क्या होगा ?
मिटा तो देंगे ये उम्मीद की लकीर मगर
मेरी जमीन और तुम्हारे गगन का क्या होगा ?
यही ख्याल तो दामन को थाम लेता है
हम उठ गए तो तेरी अंजुमन का क्या होगा ?
~आलोक श्रीवास्तव