ज़िन्दा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनियाँ से ख़ामोशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या,
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
एक ख़्वाब है जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या,
अब कौन मुन्तज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या,
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
दरिया ए गम के पार उतर जाएँ हम तो क्या..!!
~मुनीर नियाज़ी