कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुई हमसे
नमाज़ ए इश्क बहुत कम अदा हुई हमसे,
गरीब आँखों में आंसू भी अब नहीं आते
इलाही रहम ! फिर क्या खता हुई हमसे,
हम इब्तिदा ही कहाँ नेकियों की थे या रब !
तो फिर गुनाहों की क्यों इन्तेहा हुई हमसे,
ये बदनसीबी हमारी है कम हुआ ऐसे
कि दुश्मनों के भी हक़ में दुआ हुई हमसे,
सलूक मौत का हम से ना जाने कैसा हो
ये ज़िन्दगी तो बहुत बे मज़ा हुई हमसे,
कहाँ छुपायेंगे महशर में खुद को हम
कहाँ अता अत ए खैर उल वरा हुई हमसे..!!