ऐ यक़ीनों के ख़ुदा शहर ए गुमाँ…
ऐ यक़ीनों के ख़ुदा शहर ए गुमाँ किस का है नूर तेरा है चराग़ों में …
ऐ यक़ीनों के ख़ुदा शहर ए गुमाँ किस का है नूर तेरा है चराग़ों में …
धरती पर जब ख़ूँ बहता है बादल रोने लगता है देख के शहरों की वीरानी …
तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो ये जो साहिल सा नज़र आता …
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर …
वहशतें बिखरी पड़ी है जिस तरफ़ भी जाऊँ मैं घूम फिर आया हूँ अपना शहर …
दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं इस कहानी में बहर हाल कई …
दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र …
चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है जो दिल का हाल है वही …
जंगल काट दिए और फिर शहर भी जला दिए अपने घरो के चिराग़ लोगो ने …