चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है…

चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है,

उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार
वो भीड़ है के साँस भी लेना मुहाल है,

आवारगी का हक़ है हवाओं को शहर में
घर से चराग़ ले के निकलना मुहाल है,

बे चेहरगी की भीड़ में गुम है हर एक वजूद
आईना पूछता है कहाँ ख़द्द ओ ख़ाल है,

जिनमें ये वस्फ़ हो कि छुपा लें हर एक दाग़
उन आइनों की आज बड़ी देख भाल है,

परछाइयाँ क़दों से भी आगे निकल गईं
सूरज के डूब जाने का अब एहतिमाल है,

कश्कोल ए चश्म ले के फिरो तुम न दरबदर
‘मंज़ूर’ क़हत-ए-जिंस-ए-वफ़ा का ये साल है..!!

~मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

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