हरीस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
किसी ने ज़िस्म, किसी ने ज़मीर बेचा है,
नहीं रही बशरियत की खूबी इन्सान में
असास ए इंसा का सबने ख़मीर बेचा है,
इरम भी न मिली जिसके हसूल की खातिर
समझ कर ईमान को सबने हक़ीर बेचा है,
बस एक ओहदे की खातिर अमीर ए लश्कर ने
मुखालिफिन को एक एक तीर बेचा है,
बुज़ुर्ग के हुआ फैजान का यहाँ सौदा
कि पैरोकारो ने अपना ही पीर बेचा है..!!