संग ए मरमर से तराशा हुआ ये शोख़ बदन
इतना दिलकश है कि अपनाने को जी चाहता है,
सुर्ख होठों से छलकती है वो रंगीन शराब
जिसको पी पी कर बहक जाने को जी चाहता है,
नरम सीने में धड़कते है वो नाज़ुक तूफान
जिनकी लहरों में उतर जाने को जी चाहता है,
तुमसे क्या रिश्ता है कब से है मालूम नहीं
लेकिन इस हुस्न पे मर जाने को जी चाहता है,
बेख़बर वो सोये है लूट के नींद मेरी
जज़्ब ए दिल पे तरस खाने को जी चाहता है,
कब से ख़ामोश हो ऐ जान ए जहाँ कुछ तो बोलो
क्या अभी और भी सितम ढहाने को जी चाहता है ?
छोड़ के तुमको कहाँ चैन मिलेगा हमको
यहीं जीने, यहीं मर जाने को जी चाहता है,
अपने हाथों से सवांरा है तुम्हें कुदरत ने
देख कर देखते रह जाने को जी चाहता है,
नूर ही नूर छलकता है हंसी चेहरे से
बस यहीं सजदे में गिर जाने को जी चाहता है,
मेरे दामन को कोई और ना छू पाएगा
तुमको छू कर ये कसम खाने को जी चाहता है,
चाँद चेहरा है तेरा और नज़र है बिजली
एक एक जलवे पे पर जाने को जी चाहता है..!!