जंगल काट दिए और फिर शहर भी जला दिए
अपने घरो के चिराग़ लोगो ने ख़ुद बुझा दिए,
चाँद छुआ मंगल पर भी बस पहुँचने ही वाले है
मगर ज़मीं पे चलना न आया सागर सुखा दिए,
मगर कुछ ऐसे भी हुनरदां निकले कि ज़मीं को
ही मंगल कर दिया और सभी मंगल भूला दिए,
जाने किन किन खज़ानो से ख़ुदा ने नवाज़ा था
न जाने किस ख्याल से सभी खज़ाने लुटा दिए,
ज़मीं की क्या बात कहें हवस के मारे इन्साँ ने
धूल और धुएँ में तमाम आसमाँ तक उड़ा दिए..!!
~दर्पन कानपुरी