सुकुन के दिन फ़रागत की रात से भी गए
तुझे गँवा के हम भारी कायनात से भी गए,
जुदा तो हुए थे मगर दिल कभी टूटा न था
जो खफ़ा हुए तो तेरे इल्तिफ़ात से भी गए,
चले तो झील की गहराइयाँ थी आँखों में
पलट के आये तो मौज ए फ़रात से भी गए,
ख्याल था कि तुझको पा के ख़ुद को ढूंढेगे
तू मिल गया तो ख़ुद अपनी ज़ात से भी गए,
बिछड़ के ख़त भी न लिखे उदास यारों ने
अब कभी कभी अधूरी सी बात से भी गए..!!