बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है

बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
मेरे नसीब में गम के सिवा धरा क्या है,

मैं जिनके वास्ते दुनियाँ ही छोड़ आया था
वो पूछते है कि आख़िर हुआ क्या है,

निभा रहा हूँ मैं दुनियाँ के रह ओ रस्म यहाँ
वगरना जिस्म के सहरा में अब बचा क्या है,

यहाँ तो ईद का मौसम भी अब नहीं आता
ना जाने ग़र्दिश ए दौराँ को हो गया क्या है,

हर एक रात मेरी ज़िन्दगी का मातम है
हर एक शाम यहाँ मौत के सिवा क्या है,

हमारा फ़र्ज़ तो जलना है सिर्फ़ महफ़िल में
भला चराग का ख़ुशियों से वास्ता क्या है,

~~सिराज आलम ज़ख़्मी

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