तअल्लुक़ तर्क करने से मोहब्बत कम नहीं होती
भड़कती है ये आतिश दिन ब दिन मद्धम नहीं होती,
निभाना आश्नाई कर के मुश्किल तो नहीं लेकिन
किसी से भी मोहब्बत ना गहाँ यक दम नहीं होती,
तुम्हारी सोच पर हैं मुनहसिर रंगीनियाँ दिल की
ये महफ़िल बेवफ़ाई से कभी दरहम नहीं होती,
उतर जाए जो पूरा इम्तिहान ओ आज़माईश में
वो चश्म ए दिल कभी फिर आँसुओं से नम नहीं होती,
ज़माना चाहे जितने रंग ओ रुख़ बदले हक़ीक़त में
निडरता मर्द ए मैदाँ मोम की मरियम नहीं होती,
अजब दस्तूर है अबरार इस दुनिया ए बे पर का
शिकस्ता-रंग पत्तों पर फ़िदा शबनम नहीं होती..!!
~ख़ालिद अबरार