इश्क़ ने बख्शी है हमें ये सौगात मुसलसल

इश्क़ ने बख्शी है हमें ये सौगात मुसलसल
तेरा ही ज़िक्र हमेशा तेरी ही बात मुसलसल,
 
एक मुद्दत हुई मुझे तेरे कूँचे से निकले हुए
होती रहती है फिर भी मुलाकात मुसलसल,
 
यादों से दिल्लगी दिल की लगी बन जाती है
जब तसव्वुर में गुजरती है हर रात मुसलसल,
 
तुम्हारी मुहब्बत में आज उस मुकाम पर हूँ
जहाँ मेरी ज़ात में रहती है तेरी ज़ात मुसलसल..!!

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