सितम सितम न रहा जब सनम सनम न रहा
कुछ ऐसे दर्द ने घेरा कि गम भी गम न रहा,
न तोड़ दें ये मेरा ज़र्फ़ ज़माने वाले
कि था कभी जो एक चट्टान सा वो अज्म न रहा,
तू आ के झाँक और बता क्या मेरी आँखों में ?
ये लोग कह रहे है हिज़्र का अलम न रहा,
कई बरस उधार के जिए तेरे पीछे
ये बात और है जबीं पे पेंच ओ ख़म न रहा,
वही था वजह ए सुखन, साज़ ए सुखन, दाद ए सुखन
मिटा के मेरा लिखा वो कहीं रक़म न रहा..!!