वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए

वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो कश्तियाँ चलाने वाले क्या हुए ?

वो सुब्ह आते आते रह गई कहाँ
जो क़ाफ़िले थे आने वाले क्या हुए ?

मैं उन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखाने वाले क्या हुए ?

ये कौन लोग हैं मेरे इधर उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए ?

वो दिल में खुबने वाली आँखें क्या हुईं
वो होंट मुस्कुराने वाले क्या हुए ?

इमारतें तो जल के राख हो गईं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए ?

अकेले घर से पूछती है बे कसी
तेरा दिया जलाने वाले क्या हुए ?

ये आप हम तो बोझ हैं ज़मीन का
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए..!!

~नासिर काज़मी

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