मुझे अपनों में उलझन ही रही है
रहा हूँ दुश्मनों में ख़ुश हमेशा,
है इनकी इस अदा पे जान हाज़िर
ये खुल के वार करते है हमेशा,
ये जज्बो को नहीं हथियार करते
कही दुश्मन, रहे दुश्मन हमेशा,
ये रखते है समझ अच्छे बुरे की
सो चाह के भी नहीं लड़ते हमेशा,
इधर अपनों का तुमको क्या बताएँ ?
ये छुप के वार करते है हमेशा,
इन्हें अच्छे बुरे से क्या गरज़ है
हसद जब काम है इनका हमेशा,
खता खाता हूँ मैं हर बार इनसे
कि मुझको ये कहे अच्छा हमेशा,
मुझे अपनों से बस यही गिला है
कहेंगे कुछ करेंगे कुछ हमेशा,
जो मिलना छोड़ दो तुम ऐसो से
तभी तो कह सकोगे सच हमेशा..!!