कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना ही याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे,
कोई जब पूछ बैठेगा ख़ामोशी का सबब तुम से
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे,
कभी दुनियाँ मुक़म्मल बन के आएगी निगाहों में
कभी मेरी कमी दुनियाँ की हर शय में पाओगे,
कहीं पर भी रहें हम और तुम मुहब्बत फिर मुहब्बत है
तुम्हें हम याद आएँगे हमें तुम याद आओगे..!!