पा सके न सुकूं जो जीते जी वो मर के…

पा सके न सुकूं जो जीते जी वो मर के कहाँ पाएँगे
शहर के बेचैन परिंदे फिर लौट के शहर में आएँगे,

ज़न्नत का दावा और खौफ़ ए ज़हन्नुम ये सब बातें है
जिसको जो पाना खोना है यही पाएँगे यहीं लुटाएँगे,

हर साज़िश ए सियासी ऐश ए दुनियाँ की खातिर है
इंसानियत का तकाज़ा फक़त इन्सान की खातिर है,

इस दश्त ए जहाँ का आज ये कैसा कायदा क़ानून है
क़ैद हो चुके है नेक सलाखों में हत्यारे मुल्क बचाएँगे..!!

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