हरगिज़ किसी भी तौर किसी के न हो सके
हम उसके बाद और किसी के न हो सके,
आया था ऐसा दौर सभी के हुए थे हम
फिर आया ऐसा दौर किसी के न हो सके,
अफ़सोस तुमको इतनी भी फ़ुर्सत नहीं मिली
तुम मुझ पे करते ग़ौर किसी के न हो सके,
या’नी हम उम्र भर रहे बर्बाद ख़ुद में ही
या’नी ठिकाना ठोर किसी के न हो सके,
जो लोग सब का ख़ास बने फिर रहे थे ‘अक्स’
वो लोग ख़ास तौर किसी के न हो सके..!!
~अक्स समस्तीपुरी