नई पोशाक पहने है पुराने ख़्वाब की हसरत
मैं हँस कर टाल देती हूँ दिल ए बेताब की हसरत,
मोहब्बत और क्या है एक सराब ए तिश्नगी तो है
वही सहरा की चमचम में चमकते आब की हसरत,
नया किरदार गढ़ कर मैं कहानी ही बदल देती
मगर पूरी न हो पाई नए एक बाब की हसरत,
तुम्हारी याद का गहरा तअल्लुक़ आँसुओं से है
मेरी पलकों को क्या होगी किसी सैलाब की हसरत,
बस इतना सोच कर इस ओर कश्ती मोड़ दी मैंने
निकल जाए न क्यों कर इस दफ़ा गिर्दाब की हसरत,
ज़मीं पे थक के गिर जाऊँ तो शायद नींद आ जाए
कि इन आँखों को है एक उम्र से एक ख़्वाब की हसरत..!!
~चाँदनी पांडे