तलाशने सुकून को चला था एक रोज़ को…

तलाशने सुकून को चला था एक रोज़ को
नफ्स के पीछे चला था एक रोज़ वो,

उसे ख़बर नहीं थी कि सुकून मिलेगा कहाँ
दूसरों के इशारो पर निकल पड़ा एक रोज़ वो,

दौलत की रेल पेल थी, नौकरों की भीड़ थी
फिर भी सुकून मिला नहीं, दिल था क्यों न मुतमईन,

मुस्कुराहटो में खोट थी, उदास क्यूँ थी ज़िन्दगी ?
तलाश ने जवाब को निकल पड़ा एक रोज़ वो,

पहाड़ो की शैर की, समन्दरो को भी छान लिया
आसमानों पे परवाज़ की, जंगलो में भी खो गया,

न मिला कुछ तो चाँद पर भी पहुँच गया
सारी दुनियाँ खँगालने पर भी ख़ाली हाथ रहा वो,

आईने के सामने फिर खड़ा हुआ वो एक रोज़
और कहा आईने से कि थक गया हूँ मैं अब,

मुहब्बत की तलाश में फिर रहा था दर बदर
बे सुकूनी में क्यूँ कट रही है ये उमर ?

अक्स ने मुस्कुरा के कहा, क्यूँ फिरता है यहाँ वहाँ ?
जिसकी तुझे तलाश है, वो तो तेरे ही पास है,

ख़ुदी में अपने डूब जा, ख़ुदी में ही तो है ख़ुदा
सुकून को ख़ुद में तलाश कर फिर मिल जाएगा ख़ुदा..!!

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