मुक़म्मल दो ही दानों पर ये तस्बीह ए मुहब्बत है
जो आये तीसरा दाना ये डोरी टूट जाती है,
मुक़र्रर वक़्त होता है मुहब्बत की नमाज़ों का
अदा जिनकी निकल जाए क़ज़ा भी छूट जाती है,
मुहब्बत की नमाज़ों में इमामत एक को सौंपों
इसे तकने उसे तकने से नियत टूट जाती है,
मुहब्बत दिल का सज़्दा है जो है तो हैद पे क़ायम
नज़र के शिर्क वालो से मुहब्बत रूठ जाती है..!!