सिखाया जो सबक़ माँ ने वो हर पल निभाता हूँ…

सिखाया जो सबक़ माँ ने वो हर पल निभाता हूँ
मुसीबत लाख आये सब्र दिल को सिखाता हूँ,

सहे है दुःख तो मैंने भी मगर ज़ाहिर न कर पाया
मुझे देखो मैं हर हाल में ख़ुशी से मुस्कुराता हूँ,

अँधेरी रात गर आई तो उजाला दिन भी आएगा
कभी तो दिन फिरेंगे ख़ुद को ये सपने दिखाता हूँ,

जो अच्छा है भला उसका बुरा है तो भला उसका
मेरी फ़ितरत में है शामिल गले सबको लगाता हूँ,

ज़माने की दलीलों को मैं हँस कर टाल देता हूँ
मैं ख़ुश हूँ देख लो कितना सभी को यूँ जताता हूँ,

करोगे गर उम्मीद औरो से तो उम्मीद टूट जाएगा
भरोसा रख ख़ुदा पर बस यही सबको सिखाता हूँ..!!

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