कुछ इस लिए भी तह ए आसमान मारा गया
मैं अपने वक़्त से पहले यहाँ उतारा गया,
ये कैसे मोड़ पे ले आया उम्र का दरिया
कि पहले नाव शिकस्ता थी अब किनारा गया,
गुज़र रहा था मैं जब आसमां बनाते हुए
कहीं से चाँद कहीं से मेरा सितारा गया,
ये कार ए उम्र तो एक कार ए रायेगानी था
मगर वो दिन जो तुझे देख कर गुज़ारा गया,
चिराग़ बुझने लगा तो हवा ये कहने लगी
कि उसके हाथ से अब आख़िरी सहारा गया,
कुछ ऐसे ख्वाब मेरे गिर गए थे रास्तों में
सो मैं जिधर से भी गुज़रा वहां दोबारा गया..!!