किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ?

किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ?
दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ?

लिखिए कुछ और दास्तान ए दिल
और ज़माने को मुब्तला रखिए,

सर में सौदा रहे मोहब्बत का
पाँव में ख़ाक की अना रखिए,

बूँद भर आब क्या मुक़द्दर है !
अब्र रखिए तो कुछ हवा रखिए,

इस से पहले कोई जलाने आए
आप अपना ही घर जला रखिए,

क़ब्ल ए इंसाफ़ चल बसा मुल्ज़िम
अब अदालत से क्या रवा रखिए ?

जान जानी है जब अबस ही ‘हमेश’
फिर तो दुनिया से फ़ासला रखिए..!!

~अहमद हमेश

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