मतलब परस्तो को क्या पता कि दोस्ती क्या है
गुज़र गई है जो मुश्किलो में वो ज़िन्दगी क्या है,
मिलेंगे जब कभी हिज़्र ए जुदाई में कटे वो दिन
शायद तभी यकीं होगा कि ये तिश्नगी क्या है,
धूप में ख़ुद को जला कर भी सोना पड़े भूखा
वही ग़रीब बता सकता है कि बेकसी क्या है,
खिलौना समझ कर खेलने वाले रखना याद
दिल टूटा तो चलेगा पता प्यार आशिकी क्या है,
तुझे ख़बर ही नहीं आलम ए दिल की लगी का
मिला गया कोई तो होगी ख़बर दिल्लगी क्या है,
तुझसे पहले पता कहाँ था मुझे रास्ता मयकदे का
जो तेरे लब हो मयस्सर तो फिर मयकशी क्या है,
किसी मुफ़लिस से जो मिलो तो पूछना तुम नवाब
इन अमीरों को क्या मालूम कि सादगी क्या है..!!
~नवाब ए हिन्द