रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी
एक पैग़ाम-ए-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी
इस अदा का तेरी जवाब नहीं
मेहरबानी भी, सरगरानी भी
दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थी आसमानी भी
मंसबे-दिल खुशी लुटाना है
ग़मे-पिन्हाँ की पासबानी भी
दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले-गमगीं की शादमानी भी
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी
तंगना-ए-दिले-मलूल में है
बहर-ए-हस्ती की बेकरानी भी
इश्क़े-नाकाम की है परछाई
शादमानी भी, कामरानी भी
देख दिल के निगारखाने में
ज़ख्म-ए-पिन्हाँ की है निशानी भी
ख़ल्क़ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूं मैं तेरी ज़ुबानी भी
आये तारीख़-ए-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे- दरमियानी भी
अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नज़र सयानी भी
दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को है वो रातरानी भी
दिले-बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी
वज़्अ करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी
दिल को आदाबे-बंदगी भी ना आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी
जौरे-कमकम का शुक्रिया बस है
आप की इतनी मेहरबानी भी
दिल में एक हूक सी उठे ऐ दोस्त
याद आई तेरी जवानी भी
सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा
एक अन्दाजे-तुर्कमानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
जो ना अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़ की है
दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी
ज़िन्दगी ऐन दीद-ए-यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी
-फ़िराक़ गोरखपुरी