रात भी, नींद भी, कहानी भी…

रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी

एक पैग़ाम-ए-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी

इस अदा का तेरी जवाब नहीं
मेहरबानी भी, सरगरानी भी

दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थी आसमानी भी

मंसबे-दिल खुशी लुटाना है
ग़मे-पिन्हाँ की पासबानी भी

दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी

शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले-गमगीं की शादमानी भी

लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी

तंगना-ए-दिले-मलूल में है
बहर-ए-हस्ती की बेकरानी भी

इश्क़े-नाकाम की है परछाई
शादमानी भी, कामरानी भी

देख दिल के निगारखाने में
ज़ख्म-ए-पिन्हाँ की है निशानी भी

ख़ल्क़ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूं मैं तेरी ज़ुबानी भी

आये तारीख़-ए-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे- दरमियानी भी

अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नज़र सयानी भी

दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को है वो रातरानी भी

दिले-बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी

वज़्अ करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी

दिल को आदाबे-बंदगी भी ना आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी

जौरे-कमकम का शुक्रिया बस है
आप की इतनी मेहरबानी भी

दिल में एक हूक सी उठे ऐ दोस्त
याद आई तेरी जवानी भी

सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा
एक अन्दाजे-तुर्कमानी भी

पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी

जो ना अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़ की है
दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी

ज़िन्दगी ऐन दीद-ए-यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी

-फ़िराक़ गोरखपुरी

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