खून अपना हो या पराया हो…. खून अपना हो या पराया हो नस्ल ए आदम का खून है आखिर, जंग मशरिक़ में हो कि मगरिब में अमन ए आलम का खून है आख़िर, बम घरो पर गिरे कि सरहद पर रूह तामीर ए ज़ख्म खाती है, खेत अपने जले या गैरो के ज़ीस्त फाकों से तिलमिलाती है..!! ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on WhatsApp (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Like this:Like Loading... Related Posts बारहा तुझ से कहा था मुझे अपना न बना सब की कहानी एक तरफ़ है… नदी के पार उजाला दिखाई देता है