खून अपना हो या पराया हो…. 22/02/202518/07/2022 by Bazme Shayari खून अपना हो या पराया होनस्ल ए आदम का खून है आखिर, जंग मशरिक़ में हो कि मगरिब मेंअमन ए आलम का खून है आख़िर, बम घरो पर गिरे कि सरहद पररूह तामीर ए ज़ख्म खाती है, खेत अपने जले या गैरो केज़ीस्त फाकों से तिलमिलाती है..!!Share Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram Click to share on X (Opens in new window) X Like this:Like Loading...संबंधित अश'आर | गज़लें नहीं बदलता यहाँ कुछ भी आरज़ू से फ़क़त वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है ज़बाँ है मगर बे ज़बानों में है…. जो वफ़ा का रिवाज रखते हैं… इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है…Read Alsoकोई मौसम हो भले लगते थेहम एक ख़ुदा के बन्दे है और एक जहाँ में बसते हैहर रिश्ता यहाँ बस चार दिन की कहानी है