न मिली छाँव कहीं, यूँ तो कई शज़र मिले…

न मिली छाँव कहीं, यूँ तो कई शज़र मिले
वीरान ही मिले सफ़र में जो भी शहर मिले,

मंज़िल मिले न मिले मुझे कोई परवाह नहीं
मुझे तलाश है जिसकी उसको ख़बर मिले,

हर गुनाह इन्सान के चेहरे पर दर्ज़ रहता है
देखना अगर किसी रोज़ आईने से नज़र मिले,

छोटी सी बात का लोग फ़साना बना देते है
अब कैसे यहाँ किसी से कोई खुल कर मिले,

सबको मिला कुछ न कुछ ख़ास क़ुदरत से
फूलो को मिली ख़ुशबू, परिंदों को पर मिले,

बहुत मुश्किल से मिलता है कोई चाहने वाला
खोना मत, तुम्हे कोई शख्स ऐसा अगर मिले..!!

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