रौनक तुम्हारे दम से है लैल ओ नहार की
तुम आबरू हो आमद ए फ़सल ए बाहर की,
लफ्ज़ो में हम बयाँ नहीं कर पाएँगे कभी
कैसे सहर हुई है शब ए इंतज़ार की,
आ जा कि तेरे अहद ए वफ़ा का भरम रहे
रह जाए आबरू भी मेरे ऐतबार की,
हर मौज़ पर लिखा है मेरा हाल जान ए मन
क्या कैफ़ियत बताऊँ दिल ए बेक़रार की,
हम तुम से दूर रह के तुम्हारे है आज भी
हमने तो ऐसी रित निभाई है प्यार की,
अहल ए चमन की आँख से आँसू निकल पड़े
मौसम ने रुखसती जो सुनाई बहार की,
जो सब पे रहम करते है इस क़ायनात में
रहमत उन्ही पे नहीं होती परवरदिगार की,
उनके बगैर दिल का ये आलम है अब
बुझती हुई शमा हो जैसे मज़ार की..!!