आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो,
चल पड़ो तो गर्द बनकर आसमानों पर लिखो
और अगर बैठो कहीं पर तो मील का पत्थर दिखो,
सिर्फ़ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो,
ज़िंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो,
तुम्हे महसूस होगी तब हर एक दिल की जलन
जब किसी धागे सा जलकर मोम के भीतर दिखो,
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ
वक़्त की इस धुँध में तुम रोशनी बनकर दिखो,
डर जाए फूल बनने से कोई नाज़ुक कली
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो,
कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में
मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो..!!
~माणिक वर्मा