कभी नज़रे मिला के कभी झुका के लूटा

कभी नज़रे मिला के कभी झुका के लूटा
कभी हँस के तो कभी मुस्कुरा के लूटा,

मौज ए तबस्सुम में डूबता गया मैं
कभी गुफ्तगू की कभी शरमा के लूटा,

कभी कर के इंकार कभी इक़रार से
सोए हुए अरमानो को जगा जगा के लूटा,

मस्ती ए अब्सार में है वो नशा वल्लाह
कभी अपना के तो कभी ठुकरा के लूटा,

आपके लूटने की वो बारिकियाँ वल्लाह
कभी नक़ाब गिरा के कभी उठा के लूटा..!!

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