इन्सान हूँ इंसानियत की तलब है

इन्सान हूँ इंसानियत की तलब है
किसी खुदाई का तलबगार नहीं हूँ,

ख़ुमारी ए दौलत ना शोहरत का नशा
अबतक किसी का ख़तावार नहीं हूँ,

ख़िदमत ए वालिदैन फ़र्ज़ है मुझ पर
सिवाय औरो का तीमारदार नहीं हूँ,

उन्ही की दुआओं का सिला है जो
अबतक किसी का कर्ज़दार नहीं हूँ,

बेशक़, मुफ़्लिसी में गुजरी है हयात
मगर गिरफ्तार ए बदकिरदार नहीं हूँ,

ठोकरे खाई है ख़ुद ज़माने भर की
पर शुक्र ए ख़ुदा है गुनाहगार नहीं हूँ..!!

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