हमसे क़ीमत तो ये पूरी ही लिया करती है
ज़िन्दगी ख़्वाब अधूरे ही दिया करती है,
हर मुहब्बत ने अँधेरो को किया है रौशन
रौशनी तेज भी अँधा ही किया करती है,
ख़ोज मुश्किल में ही तू मुश्किलों का हल अपनी
हाँ मुसीबत भी बहुत से ज़ख्म सिया करती है,
मिलो अच्छा है ज़माने से ज़माना बन कर
खून के घूँट भी मुरौत ही पिया करती है,
क्या बुरा इसमें अगर जीत नहीं पाया तो
हार ये जीत से पुरअज्म जिया करती है,
क्यूँ ये उम्मीद कि हम चाल चले दुनियाँ से
राह ख़ुद्दारी तो अपनी ही लिया करती है..!!