गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया,

इक इश्क़ नाम का जो परिंदा ख़ला में था
उतरा जो शहर में तो दुकानों में बट गया,

पहले तलाशा खेत फिर दरिया की खोज की
बाक़ी का वक़्त गेहूँ के दानों में बट गया,

जब तक था आसमान में सूरज सभी का था
फिर यूँ हुआ वो चंद मकानों में बट गया,

हैं ताक में शिकारी निशाना हैं बस्तियाँ
आलम तमाम चंद मचानों में बट गया,

ख़बरों ने की मुसव्वरी ख़बरें ग़ज़ल बनीं
ज़िंदा लहू तो तीर कमानों में बट गया..!!

~निदा फ़ाज़ली

ज़मीन दी है तो थोड़ा सा आसमान भी दे

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