तुम्हे बहार की कलियाँ जवाँ पुकारती है…
तुम्हे बहार की कलियाँ जवाँ पुकारती हैकहती मरहबा ! सब तितलियाँ पुकारती है, न बोसा …
तुम्हे बहार की कलियाँ जवाँ पुकारती हैकहती मरहबा ! सब तितलियाँ पुकारती है, न बोसा …
होश में रह के बे हवास फिर रहे है आजतेरे नगर में हम उदास फिर …
रुख से नक़ाब उनके जो हटती चली गईचादर सी एक नूर की बिछती चली गई, …
अभी क्या कहेअभी क्या सुने? कि सर ए फसील ए सकूत ए जाँकफ़ ए रोज़ …