आँखों से मेरे ख़्वाब चुराती रही है रात

आँखों से मेरे ख़्वाब चुराती रही है रात
ख़ुद भी जगी है मुझको जगाती रही है रात,

आँखें सहर की नींद से बोझल लगीं मुझे
एक शोर जो बला का मचाती रही है रात,

हम ने तो ख़ुद में शोर मचाया था रात भर
ख़ामोशियों के क़िस्से सुनाती रही है रात,

जब भी चराग़ मैं ने जलाया है शाम को
मिल कर हवा के साथ बुझाती रही है रात,

ख़ामोश रात रहती है मैंने सुना था ये
जो दिल में आया मुझको सुनाती रही है रात..!!

~इरशाद अज़ीज़

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