सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा

सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा
जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा,

क़लक़ था सब को समुंदर की बेक़रारी का
किसी ने मुड़ के नदी की तरफ़ नहीं देखा,

कचोके के देती रहीं ग़ुर्बतें मुझे लेकिन
मेरी अना ने किसी की तरफ़ नहीं देखा,

सफ़र के बीच ये कैसा बदल गया मौसम
कि फिर किसी ने किसी की तरफ़ नहीं देखा,

तमाम उम्र गुज़ारी ख़याल में जिस के
तमाम उम्र उसी की तरफ़ नहीं देखा,

यज़ीदियत का अंधेरा था सारे कूफ़े में
किसी ने सिब्त ए नबी की तरफ़ नहीं देखा,

जो आईने से मिला आईने पे झुँझलाया
किसी ने अपनी कमी की तरफ़ नहीं देखा,

मिज़ाज ए ईद भी समझा तुझे भी पहचाना
बस एक अपने ही जी की तरफ़ नहीं देखा..!!

~मंज़र भोपाली

Leave a Reply

Eid Special Dresses for women