निगाह ए नाज़ का एक वार कर के छोड़ दिया
दिल ए हरीफ़ को बेदार कर के छोड़ दिया,
हुई तो है यूँही तरदीद ए अहद ए लुत्फ़ ओ करम
दबी ज़बान से इक़रार कर के छोड़ दिया,
छुपे कुछ ऐसे कि ताज़ीस्त फिर न आए नज़र
रहीन ए हसरत ए दीदार कर के छोड़ दिया,
मुझे तो क़ैद ए मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया,
नज़र को जुरअत ए तकमील ए बंदगी न हुई
तवाफ़ ए कूच ए दिलदार कर के छोड़ दिया,
ख़ुशा वो कशमकश ए रब्त ए बाहमी जिस ने
दिल ओ दिमाग़ को बेकार कर के छोड़ दिया,
ज़हेनसीब कि दुनिया ने तेरे ग़म ने मुझे
मसर्रतों का तलबगार कर के छोड़ दिया,
करम की आस में अब किस के दर पे जाए शकील
जब आप ही ने गुनहगार कर के छोड़ दिया..!!
~शकील बदायूनी