कितनी मोहब्बतों से पहला सबक़ पढ़ाया
मैं कुछ न जानता था सब कुछ मुझे सिखाया,
अनपढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया ए इल्म ओ दानिश का रास्ता दिखाया,
ऐ दोस्तो मिलें तो बस एक पयाम कहना
उस्ताद ए मोहतरम को मेरा सलाम कहना,
मुझ को ख़बर नहीं थी आया हूँ मैं कहाँ से ?
माँ बाप इस ज़मीं पर लाए थे आसमाँ से,
पहुँचा दिया फ़लक तक उस्ताद ने यहाँ से
वाक़िफ़ न था ज़रा भी इतने बड़े जहाँ से,
मुझ को दिलाया कितना अच्छा मक़ाम कहना
उस्ताद ए मोहतरम को मेरा सलाम कहना,
जीने का फ़न सिखाया मरने का बाँकपन भी
इज़्ज़त के गुर बताए रुस्वाई के चलन भी,
काँटे भी राह में हैं फूलों की अंजुमन भी
तुम फ़ख़्र ए क़ौम बनना और नाज़िश ए वतन भी,
है याद मुझको उनका एक एक कलाम कहना
उस्ताद ए मोहतरम को मेरा सलाम कहना,
जो इल्म का अलम है उस्ताद की अता है
हाथों में जो क़लम है उस्ताद की अता है,
जो फ़िक्र ए ताज़ा दम है उस्ताद की अता है
जो कुछ किया रक़म है उस्ताद की अता है,
उन की अता से चमका हातिब का नाम कहना
उस्ताद ए मोहतरम को मेरा सलाम कहना..!!
~अहमद हातिब सिद्दीक़ी